अमरनाथ यात्रा का मार्ग: संख्याओं में श्रद्धालुओं की धार्मिक यात्रा

        अमरनाथ यात्रा का मार्ग: संख्याओं में श्रद्धालुओं की धार्मिक यात्रा


     अमरनाथ यात्रा: क्यों छिपाया गया हिन्दुओं से इतना बड़ा रहस्य, यह झूठ सालों से फैलाया जा रहा है


अमरनाथ यात्रा का मार्ग: संख्याओं में श्रद्धालुओं की धार्मिक यात्रा KALTAK NEWS.COM

अमरनाथ यात्रा का एक महत्वपूर्ण सच: अमरनाथ यात्रा एक ऐसी अनूठी धार्मिक परंपरा है, जिसमें करोड़ों हिन्दुओं की आस्था जुड़ी हुई है। प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु पवित्र अमरनाथ गुफा की पवित्र यात्रा का आयोजन करते हैं, जो तमाम जटिलताओं को पार करके बाबा बर्फानी के दर्शन करते हैं। इस वर्ष भी, अब तक लाखों शिव भक्तों ने अमरनाथ धाम की पवित्र यात्रा का आनंद उठाया है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस साल अब तक 4.4 लाख से अधिक तीर्थयात्री ने बाबा बर्फानी के दर्शन किए हैं।

इस पवित्र यात्रा के पीछे एक महत्वपूर्ण असलीता छिपी है, जिसे केवल कुछ ही लोग जानते हैं। अमरनाथ यात्रा के संबंध में एक झूठी कथा सदियों से फैलाई जा रही है। यह झूठ वास्तविकता से दूर है और इसका मूल उद्देश्य अमरनाथ यात्रा की प्राचीनता को कलंकित करना है। धरोहर के साक्षात्कार के आधार पर, अमरनाथ गुफा की खोज का श्रेय एक मुस्लिम गड़रिये को जाता है, जिनका नाम बूटा मलिक था। उन्होंने सन् 1850 में अमरनाथ गुफा की खोज की थी।

हालांकि, इतिहास के पन्ने पलटने पर यह अनुसंधान बिल्कुल भी आपके लिए एक झूठ नहीं लगेगा। आज हम आपके सामने अमरनाथ यात्रा के असली इतिहास को तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत कर रहे हैं। इससे आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मुस्लिम गड़रिये की कथा बिल्कुल झूठी थी, और अमरनाथ यात्रा का इतिहास अपनी सटीकता में अविश्वसनीय है।


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अमरनाथ यात्रा और भगवान शिव के हिमलिंग के साक्ष्यों की बात करते समय, यह सत्य और उन्नति की अनगिनत गहराईयों में बसा हुआ है, जो धार्मिक और ऐतिहासिक ग्रंथों के माध्यम से हमें प्रस्तुत किया गया है। पुराणों के अनुसार, यह यात्रा ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना के बाद भगवान शिव द्वारा व्यक्तिगत रूप में प्रथम शिवलिंग के रूप में आरंभ की गई थी। इसके साथ ही, लिंग पुराण में भी इस यात्रा का उल्लेख होता है, जिसमें यह बताया गया है कि भगवान शिव ने पार्वती को अमरनाथ के गुफाओं में अपने रहस्यमय रूप में दर्शन दिलाए थे।

कश्मीर के ग्रन्थ राजतरंगणि में भी अमरनाथ यात्रा की प्रमुखता और महत्वपूर्णता को मान्यता देने वाले पासादिक राजा के समय के आदिकाल से शुरू होकर वर्तमान यात्रा की विस्तृत चर्चा भी की गई है। इसके बाद, मुग़ल सम्राट अकबर के शासनकाल में लिखी गई “आइन ए अकबरी” नामक किताब में भी यह उल्लेख किया गया है कि अकबर ने अपने साम्राज्य के अन्तर्गत इस यात्रा की व्यवस्था की थी और इसके महत्व को स्वीकारा गया था।

इसके बाद, 17वीं शताब्दी में मुग़ल सम्राट औरंगजेब के शासनकाल में फ्रांसीसी डॉक्टर फ्रैंकोइस बेरनर ने अपनी किताब में अमरनाथ यात्रा का विवरण दिया, जिसमें उन्होंने यात्रीगण की उम्मीदों, श्रद्धालुओं की भक्ति और स्थानीय लोगों के साथ होने वाले अनुभवों का विवरण प्रस्तुत किया।

आखिरकार, 1842 में ब्रिटिश यात्री GT Vegne ने भी अपनी किताब में अमरनाथ यात्रा का अपना अनुभव वर्णित किया, जिसमें वह इस यात्रा के महत्व और विशेषता को दर्शाते हैं। इन सभी प्रमुख स्रोतों के माध्यम से हमें यह स्पष्ट दिखाई देता है कि अमरनाथ यात्रा और भगवान शिव के हिमलिंग के अस्तित्व का पुरातन और गहन इतिहास है, जो हजारों वर्षों से धार्मिक आस्था और श्रद्धा का केंद्र रहा है।

इन उपन्यासों में, अमरनाथ यात्रा और भगवान शिव के हिमलिंग के विवरणों का व्यापक प्रस्तुतन किया गया है, जो हमें एक आदिकालिक और अत्यधिक महत्वपूर्ण धार्मिक परंपरा की महत्वपूर्णता को समझने में मदद करता है। पांचवीं शताब्दी के उपन्यास ‘लिंग पुराण’ में, इसके 12वें अध्याय में 487 नंबर पेज पर 151वां श्लोक में अमरनाथ यात्रा के विवरण को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया गया है।

उपन्यास में यह श्लोक आता है:

मध्यमेश्वरमित्युक्तं त्रिषु लोकेषु विश्रुतम् ।
अमरेश्वरं च वरदं देवैः पूर्वं प्रतिष्ठितम् ॥

इस श्लोक में ‘मध्यमेश्वर’ का अर्थ है ‘त्रिलोकों में मध्यस्थ ईश्वर’, जो कि भगवान शिव को सूचित करता है। ‘अमरेश्वरं’ शब्द से अमरनाथ जिसे ‘अमरेश्वर’ के रूप में पुकारा जाता है, की महत्वपूर्णता और महिमा को दर्शाता है।

12वीं शताब्दी में, कश्मीर के प्राचीन इतिहासकार कलहड़ ने ‘राजतरंगिणी’ ग्रंथ में भी अमरनाथ यात्रा की बड़ी महत्वपूर्णता और विस्तृत वर्णन किया। इस ग्रन्थ के 280 पेज पर 267वां श्लोक में भी यह विवरण दिया गया है, जो इस प्राचीन धार्मिक आदिकालिक यात्रा के महत्वपूर्ण और प्रमुख साक्ष्य को प्रस्तुत करते हैं।

उपरोक्त श्लोक में ‘दुग्धाव्धिधवलं तेन सरो दूरगिरी कृतम्’ के माध्यम से अमरनाथ यात्रा के महत्वपूर्ण साक्ष्यों की चर्चा हो रही है। इस श्लोक से हमें यह स्पष्ट दिखता है कि अमरनाथ यात्रा की व्यापकता और उसके साक्ष्यों की प्रमुखता प्राचीन समय से ही दर्शाई जा रही थी। यह सत्य भी प्रमाणित करता है कि 1850 में अमरनाथ यात्रा की ‘खोज’ का दावा वास्तविकता से दूर है।

आइन ए अकबरी में बताया गया है कि गुफा में बर्फ की आकृति होती है और उसे ‘अमरनाथ’ कहा जाता है, जिससे हमें यह पता चलता है कि यह स्थल प्राचीन काल से ही पूज्य है और उसका संक्षिप्त वर्णन हमें प्राप्त है।

17वीं शताब्दी में औरंगजेब के शासनकाल में फ्रांसीसी डॉक्टर फ्रैंकोइस बेरनर ने ‘Travels in the Mogul Empire’ नामक किताब में अमरनाथ यात्रा और भगवान शिव के हिमलिंग का उल्लेख किया है। इससे हमें यह प्रमाणित होता है कि यह यात्रा और उसके महत्व की चर्चा विश्वस्तरीय रूप में व्यापकता पाई थी।

आखिरकार, साल 1850 में उस ‘खोज’ का दावा आया था जिसने अमरनाथ यात्रा के इतिहास को उलझाया था, लेकिन वास्तविकता में विभाग्यशाली रूप से 1850 से पहले भी इस यात्रा की प्रस्तुति और महत्वपूर्णता की पुष्टि करते साक्ष्य उपलब्ध हैं। इसके बाद, सन् 2000 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में अमरनाथ श्राइन बोर्ड की गठन हुई, जिससे यात्रा का प्रबंधन व्यवस्थित रूप से किया जा सका और इसे धार्मिक दृष्टिकोण से सामान्य लोगों के लिए सुरक्षित और सुविधाजनक बनाया जा सका।

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