लूना-25 को पछाड़कर चंद्रयान-3 कैसे पहुंचा आगे? जानिए रहस्य….
“लूना-25” और “चंद्रयान-3” – ये नाम स्वतः में ही एक अंतरिक्ष मिशन की महत्वपूर्ण कथा सुनाते हैं। लेकिन इन दोनों मिशनों के बीच एक दिलचस्प तथ्य है – चंद्रयान-3 का लागत तीन गुना कम होने के बावजूद वह सफल कैसे हो सका? क्या हमारे पास रूस से बेहतर तकनीक है, या फिर हमारे वैज्ञानिकों की बुद्धिमता ने इस मिशन को अंजाम दिलाया? इस रहस्य को खोजते हुए, हम देख सकते हैं कि कैसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधानकर्ता ने सिर्फ 615 करोड़ रुपए की बजट में यह महत्वपूर्ण मिशन साकार किया।
जब तकनीकी दृष्टि से देखें, लूना-25 के मून मिशन की कीमत तीन गुना अधिक थी जब उसे तैयार किया गया था। लेकिन चंद्रयान-3 के मिशन में यह करीब तीन गुना कम थी। क्या यह दिखाता है कि हमारे पास बेहतर तकनीक है? यह सवाल उठता है।
वास्तविकता में, इस मिशन की सफलता का रहस्य हमारे वैज्ञानिकों की बुद्धिमता और निष्ठा में छिपा है। वे सिर्फ उपलब्ध संसाधनों का सही उपयोग करके नहीं, बल्कि अपने नवाचारी दृष्टिकोण और समृद्ध अनुभव से इस मिशन को संभावित किया। चंद्रयान-3 के पीछे की सफलता का यह अद्वितीय पहलु है कि हमारे वैज्ञानिक टीम ने आवश्यकताओं को संज्ञान में रखकर मिशन की योजना बनाई और उसे उत्तम तरीके से पूरा किया।
इस खोज में चंद्रयान-3 मिशन को सिर्फ आर्थिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि मानवीय संसाधनों और विज्ञानिक दृष्टिकोण से भी समझा जा सकता है। यह सिद्ध करता है कि भारत की वैज्ञानिक समुदाय ने अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हर संभाव प्रयास किया और साबित किया है कि कम बजट में भी महत्वपूर्ण मिशनों को सफलता प्राप्त की जा सकती है।
रूस के लूना-25 मिशन (बाएं) की कीमत 1650 करोड़ रुपए थी. जबकि, चंद्रयान-3 सिर्फ 615 करोड़ रुपए में पूरा हो गया।
“रूस का लूना-25 (Luna-25) मून मिशन ने लगभग 1650 करोड़ रुपए की लागत से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। चंद्रयान-3 बनाने के लिए लगभग एक महीने बाद ही उसका लॉन्च हुआ था। हालांकि, तेजी में पहुंचने की कोशिश में, शॉर्टकट का अनुयायी बनना पड़ा, जिसका अंत नकरात्मक था। चंद्रयान-3 ने दक्षिणी ध्रुव पर गिरकर अपनी यात्रा को समाप्त कर दिया।
इसी बीच, इसरो ने अपने चंद्रयान-3 मिशन को मात्र 615 करोड़ रुपए की बजट में तैयार किया। यहाँ उन्होंने दिखाया कि वे विफलता के बावजूद भी आगे बढ़कर सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इस महत्वपूर्ण उपलब्धि के पीछे क्या कारण था, यदि आप इसके पीछे की वजहों को इसरो के प्रमुख एस सोमनाथ या अन्य वैज्ञानिकों से पूछेंगे तो वे शायद आपको कहेंगे कि यह एक गोपनीय है। लेकिन जो कुछ तस्वीरें और जानकारियाँ सामने आ रही हैं, वे सुझाव देती हैं कि इस मिशन की सफलता के पीछे कुछ अहम तत्व थे।
इन अहम तत्वों में पहला है ‘स्वदेशीकरण’ (Indigenisation) की प्राथमिकता, जिसका मतलब है कि इस मिशन के लिए लैंडर-रोवर और रॉकेट जैसे प्रमुख उपकरण स्वदेशी होने चाहिए थे। साथ ही, सभी पेलोड्स भी स्वदेशी थे, जिससे लागत कम हो सकती थी और खुद प्रौद्योगिकी में विकास हो सकता था।
भारत को सबसे बड़ा फायदा सेविंग के मामले में रॉकेट से हुआ। रूस ने अपने रॉकेट को हैवी और ताकतवर बनाने के लिए एक्स्ट्रा बूस्टर लगाया था, ताकि उसे अधिक गति मिल सके और लूना-25 को सीधे ट्रांस-लूनर ट्रैजेक्टरी में पहुंचाया जा सके। वह रूट को कम करने के लिए इस बूस्टर का सहारा लेता था।
लेकिन इसके खिलाफ, भारत के चंद्रयान-3 मिशन ने बिना किसी एक्स्ट्रा बूस्टर के काम किया। यह लागभग 41 दिन की यात्रा के दौरान चांद्रमा की ओर बढ़ा और इसके बाद उसने पांच बार धरती की ओर और पांच बार चंद्रमा की ओर यात्रा की। इसके बाद, उसने एक लंबा हाइवे के माध्यम से अपना लक्ष्य पूरा किया।
इस मिशन की सफलता का एक और महत्वपूर्ण कारण इसरो की सरलता और उनकी अद्वितीय तकनीकी सामर्थ्य में छिपा है। पूर्व इसरो चीफ डॉ. के राधाकृष्णनन ने बताया कि इसरो की अपनी एक विशिष्ट फिलॉस्फी है, जो पुरानी तकनीकों को अपग्रेड करके उन्हें नई तकनीकों में बदलने की क्षमता रखती है। इसका मतलब यह है कि वे विश्वसनीयता और निष्ठा के साथ पुराने सिस्टम को मॉडर्न और उपयोगकर्ता के आवश्यकताओं के अनुसार ताजगी देते हैं। यह अनूठा तकनीकी दक्षता इसरो को अपने मिशन को सफल बनाने में मदद करती है।
सस्ते मिशन की दूसरी मुख्य वजह उनकी यह ‘सरलता’ है, जिसे हम ‘इंजेन्यूटी’ कह सकते हैं। इसका मतलब है कि वे अपने पिछले मिशनों से सिखी हुई तकनीकों को पुनः उपयोग में लाकर उन्हें महसूस करते हैं। इस तरीके से, वे बार-बार से नया करने के बजाय उन्हें सुधारने में समय और साधन बचाते हैं। उनका उद्देश्य समय और विशेषज्ञता की बचत होती है, जिससे उन्हें अधिक मिशनों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है।
इसके अलावा, इसरो ने अपनी मोड्यूलर तकनीक को अपने सभी मिशनों में स्थापित किया है, जिससे वे सैटेलाइट बस, रॉकेट और अन्य उपकरणों में कई सामान्य तत्वों का उपयोग कर सकते हैं। इससे कीमत में कमी होती है और उन्हें अधिक प्रभावी रूप से विभिन्न मिशनों को सम्पादित करने में मदद मिलती है।
समापक रूप से, चंद्रयान-3 मिशन के सफल पूरे होने से प्रमुख तकनीकी तत्वों की समझ और सरलता की महत्वपूर्ण भूमिका उजागर होती है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने अपनी तकनीकी बौद्धिकता और सावधानी के साथ नकारात्मक समस्याओं का समाधान करने का मार्ग प्रदर्शित किया है, जिससे वे सस्ते मिशनों के साथ-साथ महत्वपूर्ण परियोजनाओं में भी सफल हो सकते हैं।
बाहर से कम मंगाई या खरीदी जाती हैं चीजें
विकास संबंधी कीमत में कमी आना एक आदर्श मामला है, जिससे रॉकेट और सैटेलाइट की वाणिज्यिक कीमत कम हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के तकनीकी माध्यम से उनके परियोजनाओं की कीमत कम होती है जो कि बिना किसी गुणसूत्र गुमान के। उदाहरण स्वरूप, ISRO के रॉकेट्स का आयात मात्र 10% होता है, जिससे वे स्वदेशी बने होते हैं। इसके अलावा, इसरो के अन्य उपकरण और प्रौद्योगिकी में भारत में ही निर्मित चीजें प्रमुख होती हैं, जिससे उनकी कीमत कम होती है। यहाँ उनका प्रमुख ध्यान अपने ही देश के उत्पादन को दिया जाता है जिससे उनकी वित्तीय बोझ बढ़ते समय भी कम होता है। इससे वे बाहरी कंपनियों से माल खरीदने के प्रति आपके यथासंभाव प्रतिसाद का उपयोग करते हैं।
यूरोप-अमेरिका-रूस की तुलना में सस्ता मैनपावर
इसके साथ ही, भारत का मानव संसाधन भी महत्वपूर्ण तत्व है जो कि विकास संबंधी कीमतों में उनकी कमी का कारण बनता है। ISRO के पूर्व प्रमुख डॉ. के. एस. रदाक्रिष्णनन ने बताया कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि यह है कि भारत अमेरिका, यूरोप और रूस से मानव संसाधन के मामले में सस्ता है। यह तीसरी महत्वपूर्ण वजह है जो कि इसरो को सस्ते मिशन की सामर्थ्य प्रदान करती है। इसका मतलब यह नहीं है कि भारतीय वैज्ञानिक और इंजीनियर कमजोर हैं, बल्कि वे दुनिया के अन्य विज्ञानिकों से उत्कृष्टतम होते हैं।
जब बात टेस्टिंग की आती है, तो इसरो की टीम बेहद सतर्क रहती है और हर कदम पर विशिष्टता के साथ काम करती है। उनका उद्देश्य उच्चतम स्तर पर रिस्क प्रबंधन करना होता है, और वे पूरी प्रक्रिया में अच्छे नतीजे प्राप्त करने के लिए नैतिकता और उच्चतम मानकों का पालन करते हैं। इससे सुनिश्चित होता है कि समस्याओं को पहचानने और समाधान करने की प्रक्रिया में उन्हें निरंतरता और उच्चतम स्तर की प्रोफेशनलिज्म बनाए रखने में मदद मिलती है।
इसी प्रकार, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने उनकी विशिष्टता, मानकों का पालन, और उद्देश्यबद्धता की माध्यम से सस्ते मिशनों के प्रति उनकी क्षमता को साबित किया है। इससे साफ होता है कि उनके प्रयास न केवल अंतरिक्ष शोधन में महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे अपनी तकनीकी नौकरियों के लिए भारत के विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।