रंगों के बिना यह दुनिया नीरस है. एक दिन पहले ही हमने रंगों का त्योहार होली सेलिब्रेट किया है. दुनिया में करोड़ों रंग हैं. यह सृष्टि भी रंगों से बनी है. फिर इन्हीं में से कुछ रंगों को हमारी संस्कृति में वर्जित कर दिया गया है. ऐसा क्यों हैं? हिंदू सुहागन महिलाएं आम तौर पर काले रंग के कपड़े नहीं पहनती हैं. इसी तरह सुहागिन के लिए सफेद रंग को भी अशुभ माना जाता है. जबकि अन्य संस्कृतियों में इन रंगों का मतलब अलग होता है. जैसे ईसाई समुदाय में तो दुल्हन के जोड़े का रंग की सफेद होता है. वहीं इस्लाम में महिलाओं के बुर्के का रंग काला होता है. यहां तक कि इस्लाम में सफेद रंग को सबसे शुभ रंग माना जाता है.
दरअसल, दुनिया की तमाम संस्कृतियों में विभिन्न रंगों का अपना महत्व है. लाल, हरा और पीले को उत्सव का रंग कहा जाता है. चीन के लोग भी उत्सव मनाने के लिए लाल रंग का इस्तेमाल करते हैं. पश्चिमी देशों में लाल रंग को उत्वस का रंग कहा जाता है. क्रिसमस के त्योहार में तो लाल रंग का अपना अलग ही जलवा होता है.
हिंदू संस्कृति
भारत खासकर हिंदू संस्कृति की बात करें तो यहां पर दुल्हन के जोड़े का रंग लाल, पीला, हरा और सुनहरा होता है. यहां तक कि किसी अन्य रंग के साथ मिलाकर सफेद रंग में भी दुल्हन के लिए कपड़े तैयार किए जाते हैं. लेकिन, नीला और काला रंग पूरी तरह से वर्जित है.
दूसरी तरह पश्चिमी संस्कृति में सफेद को बड़ा शुभ माना जाता है. वहां दुल्हन सफेद लिबास में आती हैं वहीं हमारी संस्कृति में सफेद रंग शोक का प्रतीक है. हमलोग किसी व्यक्ति के निधन पर मातम मनाने के लिए सफेद लिबास पहनते हैं. सनातन परंपरा में जब किसी व्यक्ति का निधन होता है तो उसके परिवार के सदस्य तेरवहीं या श्राद्ध कार्य के वक्त सफेद रंग के पोशाक ही पहनते हैं. जहां तक काले रंग की बात हो तो पश्चिमी देशों में भी इस रंग को शोक का रंग माना जाता है. हम भारतीय संस्कृति में भी इस रंग को या तो शोक या फिर डार्क एनर्जी (काली ऊर्जा) का प्रतीक मानते हैं.
वैसे काले रंग का आशय किसी के त्वचा के रंग से नहीं है. हमारे सबसे बड़े भगवान श्री कृष्ण का रंग भी काला ही था. हम भारतीयों में अधिकतर का रंग काला ही होता है. दरअसल, काला कुल मिलाकर अंधेरा, भय और डर का रंग है. इसी कारण रात के अंधेरे में किसी काम को हमारे यहां अशुभ माना जाता है. हमारे यहां तो रात को ही नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव वाला समय माना जाता है.
सुहागन के लिए काल रंग क्यों नहीं
भारतीय संस्कृति में सुहागन का अर्थ बेहद व्यापक है. हम सब एक सुहागन को परिवार की लक्ष्मी, सरस्वती, पार्वती न जाने क्या-क्या मानते हैं. उसे परिवार की अलगी पीढ़ी का जननी कहा जाता है. वह अगली पीढ़ी के लिए परिवार का आधार होती है. ऐसे में सांस्कृतिक तौर पर उसे हर उस नकारात्मक चीज से दूर रखने की परंपरा है जो उस पर किसी भी रूप में बुरा प्रभाव डाल सकता है. ऐसे में इस तर्क के आगे हमारा सारा विज्ञान कमजोर पड़ जाता है. वैज्ञानिक तौर पर किसी भी रंग में कोई बुराई नहीं है. सभी तरह के रंग इस सृष्टि ने ही दिए हैं और सबका अपना खास महत्व है. लेकिन, विज्ञान के बजाय हम परंपरा और संस्कृति की बात करें तो यही हमारी सांस्कृतिक धरोहर है. हम आधुनिक बनने की कोशिश में इस धरोहर को नष्ट कर सकते हैं. लेकिन, इसे बनाए रखने में हमें कोई बुराई नहीं लगती, बल्कि यही हमारी पहचान बनती है. हम दुनिया में इसी आधार पर अलग होते हैं.
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FIRST PUBLISHED : March 09, 2023, 16:42 IST