ISRO के पूर्व चीफ के अनुसार, स्पेस मिशनों के लिए बड़े बजट की आवश्यकता

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इसरो ने चंद्रयान-3 मिशन को 14 जुलाई को लॉन्च किया था।

चंद्रयान-3 मिशन के सफल प्रक्षेपण के बाद अब भारतीय स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) की टीम एक नई मील की दिशा में अग्रसर है। चंद्रमा की नजदीकी में सॉफ्ट लैंडिंग की उम्मीद जोरों पर है, जिससे यह मिशन और भी महत्वपूर्ण हो रहा है। इसके साथ ही, रूस ने भी अपने चंद्र मिशन Luna-25 को चांद के साउथ पोल पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंड करने के लिए प्रक्षिप्त किया है। दोनों ये मिशन न केवल अंतरिक्ष शोध की दिशा में बल्कि भारत और रूस के वैज्ञानिकों के सहयोग की दिशा में भी महत्वपूर्ण हैं। ISRO के पूर्व प्रमुख के सिवन के अनुसार, चंद्रयान-3 के सफलतापूर्वक पूरे होने के बाद भारत की स्पेस मिशनों की लागत हालांकि आजकल के हॉलीवुड फिल्मों के मुकाबले कम हो सकती है, लेकिन आने वाले समय में आगे बढ़ने के लिए ज्यादा वित्तीय सहायता और बड़े रॉकेटों की जरूरत हो सकती है। इससे बेहतर अंतरिक्ष अनुसंधान के प्रति भारत की प्रतिबद्धता और प्रगति का प्रतीक साबित हो रहा है।

ISRO के पूर्व चीफ के सिवन के NDTV के साथ आयोजित खास इंटरव्यू में चंद्रयान-3 मिशन और लूनर मिशन के संदर्भ में दिए गए जवाबों से हमें अंतरिक्ष शोध में भारत की प्रगति की दिशा में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। सिवन ने बताया कि चंद्रयान-3 मिशन के लिए बड़े रॉकेट और उनके तंत्रों की आवश्यकता है और उन्होंने प्राइवेट इंडस्ट्री के साथ भी सहयोग की महत्वपूर्णता पर बल दिया। वे बताते हैं कि सरकार ने स्पेस एक्टिविटी को प्राइवेट इंडस्ट्री के लिए खोल दिया है, जो अंतरिक्ष शोध में नई दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उनके अनुसार, इस सहयोग से प्राइवेट इंडस्ट्री स्पेस साइंस में अग्रसर हो रही है और वे जल्द ही बड़ी तकनीक को अपनाने की क्षमता दिखा सकते हैं। सिवन ने इस संदर्भ में भविष्य में अंतरिक्ष शोध के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को प्रकट किया और इसके द्वारा संभावित अंतरिक्ष मिशनों की सफलता की आशा जताई।

चंद्रयान-1 की खोज का किया जिक्र

चंद्रयान-1 मिशन की स्थापना का उल्लेख करते हुए पूर्व ISRO चीफ के सिवन ने 2009 में इस मिशन के महत्वपूर्ण पलों की याद ताजगी से याद की। चंद्रयान-1 के माध्यम से चंद्रमा पर पानी की खोज की गई थी और इसके संदर्भ में वैज्ञानिकों की प्रतिक्रिया के बारे में बताया। सिवन ने इस मोमेंट को एक रोमांचक क्षण और उत्कृष्ट प्रयास की यादगार कहा। उनके व्यक्तिगत विचारों से प्रकट होता है कि चंद्रयान-1 के माध्यम से भारत ने चांद पर पानी की खोज की पहली बार और विज्ञानिक समुदाय के लिए यह एक महत्वपूर्ण मोमेंट था।

मिशन की सफलता के लिए क्वालिटी जरूरी

रॉकेटों की सफलता में, पूर्व ISRO चीफ के सिवन ने पहले पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) और फिर जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) के महत्व को बताया। आगे बढ़कर लॉन्चिंग के लिए लॉन्च व्हीकल मार्क-III (LVM3) का उपयोग किया जा रहा है, और इस संदर्भ में सिवन ने बताया कि स्पेस सिस्टम के लिए ये सबसे महत्वपूर्ण है कि काम किए जाने वाले रॉकेट और स्पेसक्राफ्ट की उच्च गुणवत्ता और विश्वसनीयता हो।

उन्होंने यह भी बताया कि स्पेस सिस्टम के काम करने का मौका एक बार ही मिलता है, और वह भी स्पेस में होता है। इसलिए उन्होंने स्पेस सिस्टम की क्वालिटी को महत्वपूर्ण माना और उसके बिना किसी भी मिशन को सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती है।

भविष्य में पेलोड क्षमताओं को बढ़ाने के लिए क्रायोजेनिक इंजन का विकास करने की महत्वपूर्णता को देखते हुए पूर्व ISRO प्रमुख ने उज्ज्वल रूप से प्रमुखने किया कि इस तकनीक का भारत के लिए अत्यंत महत्व है। वे बताते हैं कि क्रायोजेनिक इंजन के बिना, सैटेलाइट के ले जाने की क्षमता में सीमितता हो सकती है और इससे पेलोड की कमी हो सकती है। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि भारत ने इस दिशा में कई प्रयास किए हैं और पहले रूस के साथ मिलकर काम किया है। वे खुशी से बताते हैं कि अब उनके पास नए, हाई-पावर क्रायोजेनिक इंजन हैं, जो उनके मिशन को और भी सफल बनाने में मदद कर रहे हैं। इसके साथ ही वे सेमी-क्रायोजेनिक इंजन तकनीक पर भी काम कर रहे हैं, जिससे भारत के स्पेस मिशन की पूरी तरह से तैयारी की जा सके।

ISRO के पूर्व प्रमुख ने बताया कि वे संगठन में पुरुषों और महिलाओं को समान अवसर प्रदान करते हैं और सामाजिक समानता को प्रोत्साहित करते हैं। उन्होंने युवा पीढ़ी को आग्रहित किया कि वे अपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण को विकसित करें, ताकि वे आने वाले समय में नवाचारों और अविष्कारों के माध्यम से देश के प्रगति में योगदान कर सकें।


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