रिपोर्ट-मो. महमूद आलम
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!नालंदा. दुनिया को ज्ञान की रोशनी देने वाले नालंदा के कई इलाकों में आज भी अनोखी परम्परा निभाई जा जाती है. इसमें गिरियक प्रखंड के रैतर पंचायत के 15 गांव व टोला आते हैं. इनमें से 12 गांव अपने पुरखों की परंपरा को कई सालों से निभाते आ रहे हैं. इन गांवों के लोग प्याज की खेती नहीं करते हैं, लेकिन प्याज लहसुन खाते हैं.
हालांकि कुछ लोगों ने वैज्ञानिक और चांद पर जाने की बात कह प्याज की खेती करने का प्रयास किया, लेकिन उनके साथ इस तरह का हादसा हुआ कि पूरा परिवार उस हादसे से उबर नहीं पाया. तब से आज तक किसी ने हिम्मत नहीं की. गांव के जानकार बताते हैं कि सैकड़ों साल पहले संत के रूप में बाबा बनौत रहा करते थे. वे शुद्ध शाकाहारी थे. प्याज और लहसुन का सेवन नहीं करते थे. इस कारण ग्रामीणों ने भी गांव में प्याज की खेती ही करनी छोड़ दी.
12 गांव में नहीं होती प्याज की खेती
नालंदा जिला के गिरियक प्रखंड के रैतर पंचायत का रैतर गांव के अलावा धरमपुर, विशुनपुर, कालीबिगहा, दुर्गानगर, बंगाली बिगहा, शंकरपुर व जीवलाल बिगहा, भोजपुर, बेलदरिया समेत 12 गांवों में ग्राम देवता बनौत बाबा के कारण प्याज की खेती नहीं होती है. यहां जो भी प्याज लगाता है, तो उसके साथ कोई न कोई अनहोनी हो जाती है. यही नहीं, यहां की बेटियों की जहां भी शादी होती है, वहां भी खुद से प्याज की खेती नहीं करती हैं.
कई वर्षों से निभा रहे हैं परंपरा
गिरियक गांव के दक्षिण छोर पर बाबा बनौत का समाधि स्थल है. ऐसी मान्यता है कि बाबा इसी स्थल पर कुटिया बनाकर रहते थे. ग्रामीणों के बीच पूज्य थे. जब उनका देहावसान हुआ तो लोगों ने उसी स्थान पर उनकी समाधि बनाई और पूजा-अर्चना करने लगे. आज भी बनौत बाबा के दरबार में हर दिन भक्तों की भीड़ जुटती है और उसी परम्परा को निभा रहे हैं.महज एक किलोमीटर पर दूसरे गांव के किसान प्याज की खेती करते हैं. उन्हें किसी तरह का कोई नुकसान नहीं होता है.
Source link