IPL ट्रांसफर विंडो से हार्दिक पंड्या के कैसे हुए ‘मुंबई इंडियंस’ के मुकाबले वापस?-How player trades work in the IPL: Hardik Pandya moves from Gujarat Titans to Mumbai Indians. What is the transfer fee and limit?….

Hardik Pandya, IPL Player Trades Rules:
क्रिकेट फैन्स इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) 2024 सीजन का इंतजार बेसब्री से कर रहे हैं. मगर इससे पहले मिनी ऑक्शन का इंतजार है, जो 19 दिसंबर को दुबई में होनी है. सभी 10 टीमों ने इससे पहले ही अपने 89 प्लेयर्स को रिलीज कर दिया है, जिसकी लिस्ट भी रविवार (26 नवंबर) को जारी की गई है.
उसी दिन, ट्रांसफर विंडो के तहत आईपीएल इतिहास की सबसे बड़ी ट्रेड को देखने का मौका मिला. गुजरात टाइटन्स (GT) के कप्तान हार्दिक पंड्या ने अपनी टीम से नाता टूटा है. अब उन्होंने अपनी पुरानी मुंबई इंडियंस (MI) टीम में वापसी की है।
पंड्या को लेकर हुई आईपीएल की सबसे बड़ी ट्रेड
मुंबई ने पंड्या को अपनी टीम में शामिल करने के लिए एक बड़ी ट्रेड का समर्थन किया है. गुजरात ने 2022 में एक नई टीम बनाई थी और उस समय उन्होंने पंड्या को 15 करोड़ रुपये में खरीदा और उन्हें अपनी टीम के कप्तान बनाया था. इस डील के बाद पंड्या ने पहले ही सीजन में अपनी टीम को चैम्पियन बनाया था.
इसके बावजूद, फैन्स में यह सवाल उठ रहा होगा कि इस डील से पंड्या को कौन-कौन से लाभ हुए हैं? क्या उन्हें कोई अतिरिक्त फीस मिली है? क्रिकेट फैन्स इसके नियमों को और इसके तहत खिलाड़ियों को कैसे लाभ होता है, यह जानने के लिए उत्कृष्ट रुचि रखते हैं. चलिए, हम इन सभी सवालों के जवाब जानते हैं…
खिलाड़ी का ट्रेड क्या है और यह कैसे होता है?
जब ट्रांसफर विंडो के तहत एक प्लेयर अपनी टीम को छोड़कर दूसरी फ्रेंचाइजी में जाता है, तो उसे ट्रेड कहते हैं. यह ट्रेड दो तरह से होती है. पहली डील कैश में यानी प्लेयर के बदले बेचने वाली फ्रेंचाइजी को पैसे मिलते हैं. दूसरा दो फ्रेंचाइजी अपने-अपने प्लेयर्स की अदला-बदली करती हैं।
ट्रांसफर या ट्रेड विंडो कब से कब तक खुली होती है?
नियम के मुताबिक, किसी IPL सीजन के खत्म होने के एक महीने बाद से ही यह ट्रांसफर या ट्रेड विंडो ओपन हो जाती है. यह अगले सीजन की नीलामी से एक हफ्ते पहले तक खुली रहती है. साथ ही नीलामी के बाद फिर यह विंडो खुलती है, जो अगले आईपीएल सीजन के शुरू होने से एक महीने पहले बंद हो जाती है.
ऐसे में मौजूदा ट्रेड विंडो 12 दिसंबर तक खुली रहेगी. जबकि नीलामी 19 दिसंबर को दुबई में होनी है. यह विंडो 20 दिसंबर से फिर खुलेगी, जो IPL 2024 सीजन शुरू होने से एक महीने पहले बंद होगी।
क्या IPL में खिलाड़ियों की ट्रेड हमेशा रही है?
“हां, यह ट्रेडिंग विंडो 2009 में शुरू हुई थी. तब पहली डील मुंबई इंडियंस और दिल्ली डेयरडेविल्स (अब दिल्ली कैपिटल्स) के बीच हुई थी. मुंबई को आशीष नेहरा के बदले में शिखर धवन मिले थे।”
एक तरफा ट्रेड क्या है?
जब कोई एक प्लेयर पूरी तरह से कैश डील के तहत टीम ए से दूसरी बी टीम में जाता है, तो इसे एकतरफा ट्रेड कहते हैं। इसमें टीम बी को उसके बदले टीम ए को प्लेयर की कीमत देनी होगी, जो बेचने वाली टीम ने नीलामी के दौरान उस प्लेयर को खरीदने में चुकाई थी. या फिर साइन करने के दौरान चुकाई थी. हार्दिक पंड्या के मामले में इस बार ऐसा ही हुआ है। मुंबई इंडियंस ने गुजरात टाइटन्स को पंड्या के बराबर की फीस चुकाई है।
दोतरफा ट्रेड क्या है?
“इस मामले में दो टीमों के बीच खिलाड़ियों की अदला-बदली होती है. मगर इस दौरान दोनों खिलाड़ियों के बीच कीमत में अंतर वाली राशि को खरीदने वाली टीम को चुकाना पड़ता है. इसे दोतरफा ट्रेड कहते हैं।”
क्या कोई प्लेयर इस ट्रेड में कोई अधिकार रखता है?
बिल्कुल, जब भी किसी प्लेयर की ट्रेड होती है, तो उस खिलाड़ी की मंजूरी बेहद जरूरी होती है. गुजरात टाइटन्स के क्रिकेट निदेशक विक्रम सोलंकी ने बताया कि हार्दिक ने खुद ही मुंबई टीम में वापसी की इच्छा व्यक्त की थी और अब 15 करोड़ रूपये में यह ट्रेड हुआ है. दूसरी ओर ईएसपीएनक्रिकइंफो के मुताबिक, मुंबई ने हार्दिक को ट्रेड करने के लिए आईपीएल 2023 के तुरंत बाद से ही गुजरात से बातचीत शुरू कर दी थी. MI फ्रेंचाइजी यह भी जानना चाहती थी कि क्या गुजरात नकद ट्रेड करेगा या दोतरफा।
यदि कोई प्लेयर ट्रेड विंडो के तहत किसी दूसरी टीम में जाना चाहता हो और उसकी फ्रेंचाइजी इससे सहमत ना हो तो यह डील नहीं हो सकती. यानी कि नियम के मुताबिक, ट्रेड के लिए फ्रेंचाइजी की मंजूरी बेहद जरूरी है।
2010 में रवींद्र जडेजा ने अपनी टीम राजस्थान रॉयल्स के साथ नए कॉन्ट्रैक्ट पर साइन नहीं किए थे. तब उन पर आरोप लगे थे कि उन्होंने मुंबई से नए अनुबंध के लिए बात की है. तब जडेजा पर नियम के उल्लंघन के मामले में एक सीजन का प्रतिबंध लगा था।
क्या ट्रांसफर फीस भी होती है? इसकी लिमिट क्या है और इसे कौन डिसाइड करता है?
ट्रेड के दौरान एक फ्रेंचाइजी दूसरी टीम को प्लेयर की फीस के अलावा कोई रकम देती है, तो उसे ट्रांसफर फीस कहते हैं। यह फीस दोनों फ्रेंचाइजी के बीच आपसी समझौते के आधार पर तय होती है और इसकी कोई लिमिट नहीं है. इस फीस के बारे में दोनों टीमों के अलावा IPL गवर्निंग काउंसिल को भी जानकारी होती है. हार्दिक पंड्या के मामले में मुंबई ने गुजरात को कितनी ट्रांसफर फीस दी, इसका खुलासा नहीं हुआ है।
क्या ट्रांसफर फीस में प्लेयर को भी हिस्सा मिलता है?
“हां, कॉन्ट्रैक्ट के हिसाब से प्लेयर को ट्रांसफर फीस में कम से कम 50% तक हिस्सा मिल सकता है. हालांकि इस मामले में भी खिलाड़ी और उसकी फ्रेंचाइजी के बीच आपसी सहमति के हिसाब से यह हिस्सा कम भी हो सकता है. ये भी जरूरी नहीं है कि प्लेयर को हिस्सा मिले ही. मुंबई और गुजरात के बीच डील में पंड्या को क्या फायदा हुआ या क्या ट्रांसफर फीस मिली है, इसका खुलासा भी नहीं हुआ है।”
ट्रांसफर विंडो के माध्यम से एक टीम से दूसरी टीम में खिलाड़ी की चयन के पीछे कई कारगर कारण हो सकते हैं. यह विंडो खुलने पर टीमें अपनी जरूरतों के अनुसार प्लेयर्स को ट्रेड करके अपनी टीम को मजबूत बनाने का प्रयास करती हैं।
मुंबई इंडियंस ने गुजरात टाइटन्स से हार्दिक पंड्या को लौटाकर अपनी टीम में शामिल किया है, जो कि एक सफल ट्रेड का उदाहरण है। हार्दिक पंड्या, जो गुजरात टाइटन्स के कप्तान रहे थे, ने अपने अनुभव और प्रदर्शन के कारण मुंबई इंडियंस के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं। इससे मुंबई इंडियंस ने अपनी टीम को और भी बलवान बनाने का प्रयास किया है।
इस ट्रेड के माध्यम से प्लेयर्स को नए माहौल और टीम के साथ नया साझा करने का भी मौका मिलता है। ट्रेड के जरिए खिलाड़ी नए चुनौतीपूर्ण संघर्षों का सामना करते हैं और इससे क्रिकेट जगत में उत्साह और दृढ़ता बढ़ती है। आइए देखते हैं कि इस ट्रेड के बाद हार्दिक पंड्या की नई चुनौतियों और मुंबई इंडियंस की नई रणनीतियों से कैसे बदलता है क्रिकेट का समीक्षात्मक।
क्या ट्रांसफर फीस का फ्रेंचाइजी के पर्स पर भी असर पड़ता है?
बिल्कुल नहीं, ट्रांसफर फीस का फ्रेंचाइजी के पर्स पर कोई असर नहीं पड़ता है. हार्दिक पंड्या के मामले में इसे आसानी से समझा जा सकता है. पंड्या की कीमत 15 करोड़ रुपये थी. उन्हें खरीदने पर मुंबई की पर्स से उतने ही पैसे कम होंगे। जबकि गुजरात के पर्स में उतनी राशि जोड़ी जाएगी. इसमें ट्रांसफर फीस का कोई लेनादेना नहीं रहेगा।
इसका मतलब यह भी है कि कोई मालदार फ्रेंचाइजी किसी दूसरे प्लेयर को खरीदने के लिए ट्रांसफर फीस के माध्यम से अपने पर्स की लिमिट के हिसाब से कहीं ज्यादा पैसे खर्च कर सकती है. हालांकि इसके लिए उस टीम को प्लेयर के साथ कॉन्ट्रैक्ट रखने वाली फ्रेंचाइजी को भी मनाना पड़ेगा।
ऐसा इसलिए है क्योंकि ट्रांसफर फीस एक सीमित राशि होती है जिसे दोनों टीमों के बीच मुतुअलली तय करती हैं. इससे नए प्लेयर को खरीदने वाली फ्रेंचाइजी को यह सुनिश्चिती होती है कि उसके पर्स का उपयोग होशियारी से हो रहा है और उसे एक स्थिर बजट में रहना होता है।
ट्रांसफर फीस की राशि का निर्धारण टीमों के बीच की वार्ता और समझौते पर निर्भर करता है. यह फीस निर्भर करती है कि प्लेयर कितना पॉपुलर है और उसके कौन-कौन से कौशल हैं. इसके साथ ही, टीम की आवश्यकताओं और रणनीति के आधार पर यह भी तय होता है।
ट्रांसफर फीस की जरूरत उस समय होती है जब किसी टीम को अपनी जरूरतों के अनुसार एक नये प्लेयर की आवश्यकता होती है और वह अन्य टीम से उस प्लेयर को हासिल करना चाहती है. इसमें ट्रांसफर फीस का प्रबंधन बनाए रखना महत्वपूर्ण है ताकि फ्रेंचाइजी अपने बजट में रहकर प्लेयर को हासिल कर सके और टीम की बलासंग बनाए रख सके।
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